...

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दोष किसका?
जिसने जीवनदान दिया,
प्रकृति का निर्माण किया,
फूल, पौधे, पानी, हवा,
देकर मुझपर बड़ा एहसान किया।

उस धरती माँ को
क्यों मिले इतना दुख।
क्या मानव सही है,
जरा अपने आपसे पूछ?

क्या कभी तूने सोचा
आखिर है दोष किसका?

पीने को पानी,
एक वरदान था मिला।
मैने किया उसका
नदी से नाला।

जिस मिट्टी ने
रहने को पनाह दी,
मैने उसी को हटाकर
cement की परत बना दी।

जिसने सही राह पहले से
थी मेरे लिए बनाई,
मैं मूर्ख उसे छोड़
कूद गया गहरी खाई।
ऐसा कर मैंने
क्या होशियारी दिखाई?

जिस मानव बुद्धि पर
मुझे गर्व है,
क्या सही मायने में
उसे इस्तमाल किया है?

ये अवनी, ये भूमि,
स्वर्ग मानी जाती थी।
आज इस धरती की
है नर्क जैसी स्तिथि।

क्या यही मेरी पहचान?
मानव के रूप में हैवान?
जिसे बनाया था
भगवान ने अच्छा इंसान?

करने अच्छे काम,
अब जाग मूर्ख नादान।
जल्दी माफी मांग,
दोषी सिर्फ तू है, इंसान!!!

© Kshitija D.

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