...

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भरोसा
ना जाने क्यों हम किसी का इंतजार करते हैं,
बेवजह ही हम उनपर एतबार करते हैं,

आदत से मजबूर हैं लोग, जो भरोसे का व्यापार करते हैं,
शायद इसीलिए ही अपनो का मुखौटा इख्तियार करते हैं,

वो अपने ही हैं जो अपनो को शर्मसार करते हैं,
कभी दौलत का कभी शोहरत का, फिजूल ही अहंकार करते है,

तारीफ के काबिल है दुश्मन जो सामने से वार करते हैं,
मगर उनका क्या जो आस्तीन में छुप भरोसा तार तार करते हैं,

शिकवा नहीं हमे उनसे कोई जो ये अपनी फितरत के अनुसार करते हैं,
कमबख्त हम ही हैं गुनहगार जो हर किसी पे भरोसा बार बार करते हैं।।
© secret_script