...

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वो वक़्त कुछ औऱ था..!
"हाँ"... अब मुश्किल है तुम्हें पाना
मुड़ के लौट कर उस वक़्त में जाना,

मैंने तुम्हें तब पाया था
जब टेपरिकॉर्डर में रिवर्स बटन होता था,

"बस" नहीं थी
तुम्हारे घर तक पैदल रस्ते थे,

चार पहियों बाली गाड़ी नहीं
दोपहिया साइकिल थी,

तब इतना बेबाक़ीपन कहाँ था
मैं घबराता था तुम शर्माती थी,
हिचकियाँ थी सिसकियाँ थी
मोबाइल नहीं कागज़ पे लिखी चिठियाँ थी,

यह पलाज़ो नहीं.. सादी सलवार कमीज़ थी,

खुले बाल नहीं लंबी चोटी थी.. परांदे थे रिबन थे तब चुनी कंधे पे नहीं सीने पे सजती थी,

तब सच था भोलापन था वक़्त था फ़ुर्सत थी.. तुम थी.. मुहब्बत थी,

औऱ अब..., अब वक़्त बदल गया है तुम बदल गयी हो,
अब ना वो टेपरिकॉर्डर है जिसमें रिवर्स बटन होता था.. अब "टच" का ज़माना है ऊंगलियों से स्क्रीन टच करो औऱ सब हाज़िर.. कितना आसान है ना सब कुछ,

पऱ अफ़सोस.. इस टच के ज़माने में अब तुम मेरे टच में नहीं हो,

बस अब जेहन में यादें हैं औऱ एक अधूरा सा अफ़साना है... औऱ "हाँ"... यक़ीन यह भी है के कहीं अब तुम फिऱ मिलो भी तो...

यक़ीनन.. अब मुश्किल होगा तुम्हें पाना
मुड़ के लौट कर.. उस वक़्त में जाना!

© बस_यूँही