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बचपना
बहुत शांत सी होती है वो बचपन की जिंदगानी,एक अजीब सी बेपरवाही हर पल हर दिन एक अलग सी चाहत और शायद कभी न साकार होने वाली ख्याईशे फिर भी मस्त मग्न जी लेता है हर कोई,पर जब से जिम्मेवारी ने जिंदगी में दस्तक कर देती है तो जिंदगी काफ़ी लचीली हो जाती हैं क्योंकी ना चाहते हुए भी कभी आपने तो कभी गैरों के खातिर दिल से समझौता करनी होती हैं। इसके बावजूद भी कभी डिप्रेशन तो कभी अकेलापन जैसी खतरनाक समस्या सर बोझिल हो जाते है.

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