...

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जिंदगानी
किसी को इक शाम सुहानी चाहिये
किसी को मौजौ की रवानी चाहिये
किसी को ख्बाब आसमानी चाहिये
किसी को रोज मधुशाला की मेजबानी चाहिये

किसी को बस थोडी सी जिंदगानी चाहिये
किसी को मौसम रुमानी चाहिये



मुझे भी आरजू
कल आग की थी
पर आज
पानी चाहिये

बस उधार की साँसे है
थोडी सी उधार
जिंदगानी चाहिये

न मौजो की रवानी चाहिये
न मधुशाला की मेजबानी चाहिये

ये जो थोडा बाकी है जीवन
इसमें
बस
फकीरो सा "अंदाज" चाहिये
© रविन्द्र "समय"