...

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तुझसे नहीं ऐ ज़िन्दगी
तुझसे नहीं ऐ ज़िन्दगी ;
खुद से ज़रा नाराज़ हूं !
कल किसी की आंख का नूर थी;
आज किसी के घर की लाज हूं !
दिल में रही मेरी आरज़ू ;
लुटती रही मेरी आबरू !
मैं इक अनसुनी आवाज़ हूं ;
इक अनकहा अल्फ़ाज़ हूं !
जो अंजाम तक न पहुंच सकी ,
मैं वही परवाज़ हूं !
नाज़ था मुझपर जिन्हें,
उनके लिए मैं दगाबाज़ हूं !
जो अंजाम तक न पहुंच सकी ,
मैं वही परवाज़ हूं !!


© Brijendra Kanojia