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"तिरंगा"
ये सत्य हमेशा अमिट रहा,
शत्रुमुख नक्श पा न सका,
विश्वगुरु के गौरव संग,
'भारत' सर्वस्व अमर रहा।

धोखे कपटी सौदागर ने,
जब लूट हमारा ताज लिया,
राष्ट्र शक्तियां प्रखर हुईं,
जुर्रत को सहसा डिगा दिया।

भ्रम हीनभाव विद्वेश रचित,
चहुंदिश तिमिर फैलाया था,
इतना निर्मम बर्बर होकर,
नवअस्तित्व रचा न सका।

मातृत्व ने धैर्य संजोया था,
निर्भय प्रेम पिरोया था,
गोद खून से सींची थी,
तब वीर पुरुष अवतरित हुआ।

दुष्ट रूप संहार किये,
हृदयांचल शीश उठाया था,
प्रण लिए पावन अंचल से,
दुश्मन बचके जा न सका।

'आज़ाद' 'बिस्मिल' का 'तिलक' किए,
अद्भुत शौर्य श्रृंगार किया,
मृगांक सूर्य सर्वत्र हुआ,
ऐसा रौद्र प्रतिकार किया।

झांसी रानी योद्धा सच्ची,
मुख मंडल आद्विक तेज हरा,
हीन शत्रु भौंचक हुआ,
विकराल रूप 'लक्ष्मी' ने धरा।

'गांधी', 'पटेल', 'अंबेडकर' ने,
स्वतंत्र राज जब धार लिया,
नवसार्थक इतिहास रचा,
जो युगों-युगों, जीवन्त हुआ।

'मदर' 'इन्दिरा' 'सरोजिनी' से,
हमने प्रगति सजायी है,
वर्षों नित-नित जतन किए,
तब मिट्टी, हिस्से आयी है।

पर्व राष्ट्रप्रेम का आता है,
मन भावों से भर जाता है,
सम्बन्धों के रंग अनेक,
मुझे केसरिया भाता है।

मातृभूमि के चरणों में,
वीरों ने शीश नवाया है,
तब हमने अपनत्व लिए,
अपना "तिरंगा" फहराया है।

✍️प्रज्ञा वाणी।
© प्रज्ञा वाणी