पैसे से चलती है दुनिया 🥺🥺🥺🥺🥺
पैसे से चलती है दुनिया
जब भूख लगती है
तो पैसे से मिलता है
खाना बिना पैसे कोई किसी का नही 🥺🥺🥺
अभी कुछ दिनों की बात है हमारा सिलेंडर खतम हो गया था और दूसरा सिलेंडर लेने के पैसे नहीं थे
महीने का आखरी दिन सैलरी १० को
फिर क्या था घर में राशन तो है
लेकिन गैस नही
पेट में भूख तो है लेकिन
खाना बनाने की कोई सुविधा नहीं
मेरी छोटी सी बेटी आंखों
में आंसु लिए आई बोली मां मुझे
भूख लगी है
मेरी छोटी सी गुड़िया तुझे
केसे समझाऊं घर में सिलेंडर नही हैं
और तुझे क्या बताऊं हमारे पास पैसे नहीं हैं
उस दिन तो एक पतीले में उपले जलाए
चाय वाले बर्तन में चावल उबाल दिए
बस मेरी गुड़िया तो उसी के खुश हो गई
कुछ खाने को मिला
मुझे इतना दुख हुआ इतना लाचार खुदको कभी
नहीं समझा होगा
फिर दूसरे दिन बाहर से खाना खाया
फिर तीसरे दिन भी बाहर का खाना खाया
ऐसे करते करते एक दिन पैसे नहीं थे
हम सोते रहे सारी रात सोए सुबह से
दिन हो गए लेकिन पेट में कुछ गया
नही अभी तक
फिर नीचे मकान मालिक के पास गई मेने
उनको बोला अंटी जी थोड़ी खिचड़ी
बनानी है अपने चूल्हे पे बना दो मेरी
बेटी भूखी है
उसने जलन के मारे बोला हमारी गैस भी खतम
हो जायेगा तुम्हारी खिचड़ी बनाई तो
फिर में वापिस आ गई मेरी बेटी रोने लगी भूख
से छोटे बच्चे भूख सेहन नही कर सकते
शाम को में बाहर से ले आई खाना खिलाया
दिन गुजर गया
ऐसे दिन गुजरते गए फिर एक दिन ऐसा था एक
रुपया हाथ में नही था सब सुबह से भूखे थे
लेकिन पैसे ना होने के कारण भूखे थे
बाहर का खाना खाने से हम मां बेटी दोनों
बीमार पड़ने लगे क्योंकि खाना और पैसे की
कमी को देखते हुए हमने अपनी भूख को कम
करते चलें गए
धीरे धीरे कमजोर हो गए एक दिन बीतने के
बाद दूसरा दिन बिताना मुश्किल से भरा था बेटी को कुछ बिस्किट खिला कर दिन निकल गया
शाम को क्या करते उनको भी भूख लगी
लेकिन उन्होंने...
जब भूख लगती है
तो पैसे से मिलता है
खाना बिना पैसे कोई किसी का नही 🥺🥺🥺
अभी कुछ दिनों की बात है हमारा सिलेंडर खतम हो गया था और दूसरा सिलेंडर लेने के पैसे नहीं थे
महीने का आखरी दिन सैलरी १० को
फिर क्या था घर में राशन तो है
लेकिन गैस नही
पेट में भूख तो है लेकिन
खाना बनाने की कोई सुविधा नहीं
मेरी छोटी सी बेटी आंखों
में आंसु लिए आई बोली मां मुझे
भूख लगी है
मेरी छोटी सी गुड़िया तुझे
केसे समझाऊं घर में सिलेंडर नही हैं
और तुझे क्या बताऊं हमारे पास पैसे नहीं हैं
उस दिन तो एक पतीले में उपले जलाए
चाय वाले बर्तन में चावल उबाल दिए
बस मेरी गुड़िया तो उसी के खुश हो गई
कुछ खाने को मिला
मुझे इतना दुख हुआ इतना लाचार खुदको कभी
नहीं समझा होगा
फिर दूसरे दिन बाहर से खाना खाया
फिर तीसरे दिन भी बाहर का खाना खाया
ऐसे करते करते एक दिन पैसे नहीं थे
हम सोते रहे सारी रात सोए सुबह से
दिन हो गए लेकिन पेट में कुछ गया
नही अभी तक
फिर नीचे मकान मालिक के पास गई मेने
उनको बोला अंटी जी थोड़ी खिचड़ी
बनानी है अपने चूल्हे पे बना दो मेरी
बेटी भूखी है
उसने जलन के मारे बोला हमारी गैस भी खतम
हो जायेगा तुम्हारी खिचड़ी बनाई तो
फिर में वापिस आ गई मेरी बेटी रोने लगी भूख
से छोटे बच्चे भूख सेहन नही कर सकते
शाम को में बाहर से ले आई खाना खिलाया
दिन गुजर गया
ऐसे दिन गुजरते गए फिर एक दिन ऐसा था एक
रुपया हाथ में नही था सब सुबह से भूखे थे
लेकिन पैसे ना होने के कारण भूखे थे
बाहर का खाना खाने से हम मां बेटी दोनों
बीमार पड़ने लगे क्योंकि खाना और पैसे की
कमी को देखते हुए हमने अपनी भूख को कम
करते चलें गए
धीरे धीरे कमजोर हो गए एक दिन बीतने के
बाद दूसरा दिन बिताना मुश्किल से भरा था बेटी को कुछ बिस्किट खिला कर दिन निकल गया
शाम को क्या करते उनको भी भूख लगी
लेकिन उन्होंने...