खुले आसमान की सैर।
"चल गुनगुनाते हैं ,
खुले आसमानों में
पतंगे उड़ाते हैं
खबरदार होकर ,
मरना नही अच्छा,
कुछ देर के लिए सही
बेखबर हो जाते हैं ।
बे तरजीब से से
क्यों फिरते हो राहगीरी में,
आओ बिखरा हुआ
ये घर सजाते हैं ।
मालूम है की राह में ,
आयेंगी दुश्वारियाँ बहुत,
अब चल पड़े हैं तो,
मंजिल का...
खुले आसमानों में
पतंगे उड़ाते हैं
खबरदार होकर ,
मरना नही अच्छा,
कुछ देर के लिए सही
बेखबर हो जाते हैं ।
बे तरजीब से से
क्यों फिरते हो राहगीरी में,
आओ बिखरा हुआ
ये घर सजाते हैं ।
मालूम है की राह में ,
आयेंगी दुश्वारियाँ बहुत,
अब चल पड़े हैं तो,
मंजिल का...