...

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पवित्र प्रेम...
अनगिनत सदियां बीत जाएं,
वादियों की तरह मेरे वादें भी
अचल अटल अडोल रह जाते हैं।
हृदय की घोंसले में छुपाकर बिठाया
निर्मल निमृत अपरिमित अतुलित प्यार भी।।

कशिश है, कोशिश है, ख्वाहिश है
और थोड़ी कश्मकश भी।
बयान न कर सकूंगी,
अंतरंग की भावनाओं की नदियां
अंतर्मुखी अंतरगंगा बन,
अंतर्गामिनी गुप्तगामिनी की तरह,
बहने लगे प्यार का सागर की ओर।।

और क्या कहूं, जीवन अमृत समान,
मान, शान,
आन बान,
सम्मान के साथ आगे आगे,
चलते, दौड़ते, उड़ते चला गया आगे आगे।।

शुभ, शुद्ध और श्रेष्ठ कर्म,
परिष्कृत, प्रकाशित, पुलकित,
प्रफुल्लित, प्रज्वलित पवित्र धर्म,
सकारात्मक, सृजनात्मक, स्फूर्तिदायक,
प्रेरणादायक और रचनात्मक
आध्यात्मिक ज्ञान, ध्यान और,...
अत्यंत उन्नत, अती उत्तम,
अनुपम और अप्रतिम अनुभूति से,
जीवन ज्योत जगमगाया।।

© Vanishri Patil
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