...

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ग़ज़ल: तुम उसको हाथ लगाना मगर इजाजत से
जो उसने देखा मुझे आज यूँ मुहब्बत से
लगा कि ख्वाब की शादी हुई हक़ीक़त से

तुम्हारी है वो,तुम्हारी रहेगी; बात अलग..
तुम उसको हाथ लगाना मगर इजाजत से

ख़ुदा जो सच है इबादत मिरी जवाब दे फिर
मिरी फसल पे तू बरसा है किस 'अदावत से

बगैर इसके ग़ज़ल की न रौशनी होती
अगर चराग जला है तो बस अकीदत से

अश'आर कह के अँधेरों पे मैं हुआ हूँ शम्स
मुझे तो इल्म भी हासिल हुआ जहालत से
© 'शम्स'

बह्र: १२१२ ११२२ १२१२ २२/११२