गजले
ये जो आग बाहर जल रही है
ये आग मेरे सीने में भी जल रही है,
मैं पहले पानी की तरह बहता था,
अब आग बनकर जल रहा हु,
इस शरद मौसम में शराब तो पीलू मैं,
मगर शराब का नशा चढ़ता नही
कहि अंदर की आग दहकने न लग...
ये आग मेरे सीने में भी जल रही है,
मैं पहले पानी की तरह बहता था,
अब आग बनकर जल रहा हु,
इस शरद मौसम में शराब तो पीलू मैं,
मगर शराब का नशा चढ़ता नही
कहि अंदर की आग दहकने न लग...