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पुरुषोत्तम श्री राम
पुरुषोत्तम श्री राम
श्री राम के जैसा चरित्र न मिलता
चाहे ढूंढ लो इस जहान में
मर्यादा की जो साक्षात मूर्ति, न उनसे बड़ा कोई ज्ञान में।।

शिव का क्रोध और दुर्गा-सी शक्ति
हनुमान सी भक्ति राम में
आकर्षण जिनका श्री कृष्ण के जैसा, सत्य-धर्म सी सरलता राम में।।

बुद्ध, महावीर-सी दया-करुणा
शौर्यता भी होती राम में
त्याग, प्रेम भावना यीशु जैसी, परशुराम-सी योग्यता राम में।।

पुत्र, स्वामी हर सुख-दुख के साथी
समानता की भावना राम में
सूर्य जैसा तेज है जिनका, चंद्रमा-सी शीतलता राम में।।

वही बिगाड़े वही संवारे
विधना, विधाता की नीति राम में
कालसमय को वही चलाते, सब अवतार का रूप है राम में।।

श्री राम के हृदय शिव-शंकर रहते
शिव खोए है राम में
ये ईश्वर के दो स्वरूप कहलाते, भक्त भेद न करते शिव-राम में।।

राममयी आज दुनियां सारी
ऐसा आकर्षण है प्रभु राम में
दो अक्षरों का ये नाम है सुंदर, सारा जग समाया राम में।।

कण-कण में श्री राम ही बसते
सब जीव समाते राम में
राम आत्मा राम परमात्मा, सब ध्यान लगाते राम में।।