माहवारी एक त्यौहार!
आयी जब मेरे द्वार, ये चार दिनों का वार|
केवल थी ग्यारह पार, बिल्कुल ना थी तैयार|
चीर पें लाल रंग पक्के,
देख रह गई हक्के- बक्के|
वो तो थे खुन के थक्के,
अब छुटे मेरे छक्के||
क्या कोई बिमारी थी,
जो रक्तों से स्नान करायी थी?
लगा अब हुई जग परायी,
बतलाई तू क्यों नहीं, माई?
आयी जब मेरे द्वार, ये चार दिनों का वार| करना ना तुम प्रचार, सिखलाई माँ लोकाचार ||
...
केवल थी ग्यारह पार, बिल्कुल ना थी तैयार|
चीर पें लाल रंग पक्के,
देख रह गई हक्के- बक्के|
वो तो थे खुन के थक्के,
अब छुटे मेरे छक्के||
क्या कोई बिमारी थी,
जो रक्तों से स्नान करायी थी?
लगा अब हुई जग परायी,
बतलाई तू क्यों नहीं, माई?
आयी जब मेरे द्वार, ये चार दिनों का वार| करना ना तुम प्रचार, सिखलाई माँ लोकाचार ||
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