चिंताएं बनी चिताएं
दुनिया की इस चकाचौंध में,
दौड़ती भागती जिंदगी में,
चारों तरफ सिर्फ दौड़ती है चिंताएं।
चिंताएं जो अदृश्य होती,
पर दृश्य हैं मनुष्य के मस्तिष्क पटल पर,
हर मनुष्य के मस्तिष्क पटल पर,
उत्पात एवं तांडव मचाती, सिर्फ चिंताएं,
बाहर से व्यक्ति जितना ही सहज दिखता हो,
पर मस्तिष्क पर उभरती रेखाएं चिंताओं की,
न जाने किस चक्रव्यूह में मनुष्य को भेदने,
की ताकत में बैठा,
जगत में जो भी प्राणी होता पैदा,
इस तो होता ही है गुजरना, इस व्यूह से,
शायद जब तक मां की गोद,
उसे होती है प्राप्त, ...
दौड़ती भागती जिंदगी में,
चारों तरफ सिर्फ दौड़ती है चिंताएं।
चिंताएं जो अदृश्य होती,
पर दृश्य हैं मनुष्य के मस्तिष्क पटल पर,
हर मनुष्य के मस्तिष्क पटल पर,
उत्पात एवं तांडव मचाती, सिर्फ चिंताएं,
बाहर से व्यक्ति जितना ही सहज दिखता हो,
पर मस्तिष्क पर उभरती रेखाएं चिंताओं की,
न जाने किस चक्रव्यूह में मनुष्य को भेदने,
की ताकत में बैठा,
जगत में जो भी प्राणी होता पैदा,
इस तो होता ही है गुजरना, इस व्यूह से,
शायद जब तक मां की गोद,
उसे होती है प्राप्त, ...