...

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बहुत कुछ बोलता हूँ मै...
समंदर की नब्ज टटोलता हूं मैं,
पत्थर को पानी में घोलता हं मैं ।

तुम्हारा अंदाज है भाता मुझे तुम्हारे ही लहजे में बोलता हूं मैं,

मुझे क्यू नजर आता है चेहरा तुम्हारा खत जब तुम्हारे खोलता हूं मैं।

मुझे नहीं है चीखने की जरूरत कलम से बहुत कुछ बोलता हूं मैं । ।


© Ashish Morya