...

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देखता रह गया
चांद को रात भर देखता रह गया
अपने हाथों में मैं खोजता रह गया
काश बाहों में ले उसको सो पाता मैं
रखके सीने पे सर उसके रो पाता मैं
दिन में भी उसको छुपने न देता कभी
दूर मुझसे न होने मैं देता कभी
उसके धब्बों को उसकी बनाकर चमक
रोशनी उसकी खोने ना देता कभी
उसकी शीतल चमक, उसकी प्यारी नज़र
उसकी भोली हंसी, जिसमें मेरा बसर
उसके प्यारे से सपनों के नन्हें से पर
उसकी काटों से उलझी वो संकरी डगर
काश रस्तों में उसको जगा पाता मैं
अपने हाथों पे लेकर उड़ा पाता मैं
उसको जीवन का हिस्सा बना पाता मैं
उसके ख्वाबों को पूरा, दिखा पाता मैं
हाथ में उसके हाथों को ले करके मैं
अपने हिस्से की खुशियां भी दे करके मैं
उसके सारे गमों को मिटा पाता मैं
उसको दुनियां की शोहरत दिला पाता मैं
काश मुमकिन, यही मेरा सपना बने
दूर होकर भी वो मेरा अपना बने
मैं बनूं ना बनूं उसकी मंज़िल का घर
आशियां उसके ख्वाबों का अपना बने.....
© Er. Shiv Prakash Tiwari