...

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चुपचाप समझता है
नींद ना आने पर भी वो मेरे काम के लिए बातें बन्द कर देता है,
कभी कभी वो मुझे खामोशी से समझता है....

मुझे भूखा देख कर खुद भरे पेट भी खाने की कोशिश करता है,
कभी कभी वो मुझे खामोशी से समझता है...

प्यार का इज़हार करना उसे नही है आता,
अपनी पसंद के तौफे लाने में भी वो confuse हो है जाता,
दिमाक से ना सोच कर वो मेरी ख्वाईशो के लिए अपना सर है झुकाता,
कभी कभी वो मुझे खामोशी से समझता है...

झगड़े होते है कई और हमेशा मुझसे गुस्सा पहले हो जाता है,
गुस्सा ठंडा होने पर अपनी ज़ुबान पे sorry का अल्फ़ाज़ पहले लाता है,
कभी कभी वो मुझे खामोशी से समझता है...

रोती मैं हूँ और आंसू उसके निकल आते है,
दुखी मैं होती हूँ और दर्दे तकलीफ उसको दिन रात सताते है,
कभी कभी वो मुझे खामोशी से समझता है....

ज़िन्दगी की उलझनों...