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प्रेरणाएं अदभुत
*"परमात्म प्रेरणाओं का एक ही अंतरभाव" * * वास्तव में आत्माओं की अंतराकांक्षा और आध्यात्मिक लक्ष्य के अनुरूप किसी भी प्रकार के पुरुषार्थ या कर्मों का अल्टीमेट निष्कर्ष होता है - परमात्मा के समकक्ष स्थिति को प्राप्त करना। जीवन की वर्तुलाकार यात्रा में इस स्थिति की प्राप्ति सम्भव ही नहीं है। लेकिन राजयोग की पराकाष्ठा की स्थिति में जो आंतरिक अनुभूति होती है, उसमें अन्तर जगत की अदृश्य चैतन्य ऊर्जा का वर्तुल पूरा हो जाता है। यह अनुभूति ही परमात्मा के समकक्ष होने की स्थिति होती है। यह अनुभूति अल्पकालिक होती है। इस स्थिति के अल्पकालिक अनुभव का प्रभाव कल्प के पूरे होने तक रहता है। इसलिए ही परमात्मा भी दिव्य प्राप्तियों के लिए प्रेरित करते हैं।*