...

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डूब रहा हूं मैं ~~~
किनारे पर खड़ी भीड़ के साथ,
तुम सब भी देख रहे होंगे कि,
डूब रहा हूं मैं।

हद तो देखो मेरी नाउम्मीदी की,
तुम्हें आवाज देने से भी अब तो,
ऊब रहा हूं मैं।

याद है बीते वक्तों में तुम भी मेरे,
मोहताज़ रहे हो सो सोचो? क्या,
खूब रहा हूं मैं।

उस वक्त तुम लोग फक्त बातें देते,
उन बातों को जो मिलता था वही,
तूल रहा हूं मैं।

अब तो आँखों में कंकर जैसा हूं,
तेरी जानिब उठने वाले पैरों की,
सूल रहा हू मैं।

तस्सली छोड़ो जब साथ नहीं हो,
क्या कहा? अब भी मेरे हो यानी,
भूल रहा हूं मैं?

यम ने भी पंखे से लटका देखा तो,
घंटों बैठा रहा सोचता, कि शायद,
झूल रहा हूं मैं।

मेरी बेसब्री के सारे किस्से झूंठे थे,
सालों का सब्र भी देख छगन,क्या
कूल रहा हूं मैं।

छगन जेरठी
© छगन सिंह जेरठी