...

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अश्क तेरे
गिरे जब अश्क तेरे, मेरे ज़ख़्मों पर
सच कहता हूँ मेरे चोट का ये दवा बन गया
माना कि अभी ज़ख़्म गहरे मगर
दर्द का नाम-ओ-निशान मिट गया

पड़े थे गुलाब मेरे किताबों में तेरे नाम के
अब इनमें भी हल्का सा निखार आ गया
लौट के फिर जब आना हुआ तेरा
मेरे दिल का ख़ार भी गुलज़ार बन गया

एक वक़्त था जब थे हम नासमझ बहुत
अब ये फ़ासला मेरे जिंदगी का सबक़ बन गया
सुना जब वर्षों के बाद तेरे आवाज़ को
मेरे बेजुबां जिंदगी को भी राग मिल गया

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