कुछ दिल की बात
मंथन कर हर्फ़ -ए- दरिया का बेमिसाल शब्द मैं लाता हूँ
तेरे बेमिसाल हुस्न के आगे खुद को फिर ठगा मैं पाता हूँ
छोड़कर फूल तितलियाँ भी तेरे हाथों पर बैठती हैं आकर
क्यूँ न कहूँ तुझे मल्लिका -ए- बागीचा सोचता मैं रहता हूँ
तेरे बालों में लग कर गुलाब भी खिला रहता है दिन भर...
तेरे बेमिसाल हुस्न के आगे खुद को फिर ठगा मैं पाता हूँ
छोड़कर फूल तितलियाँ भी तेरे हाथों पर बैठती हैं आकर
क्यूँ न कहूँ तुझे मल्लिका -ए- बागीचा सोचता मैं रहता हूँ
तेरे बालों में लग कर गुलाब भी खिला रहता है दिन भर...