...

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कुछ दिल की बात
मंथन कर हर्फ़ -ए- दरिया का बेमिसाल शब्द मैं लाता हूँ
तेरे बेमिसाल हुस्न के आगे खुद को फिर ठगा मैं पाता हूँ

छोड़कर फूल तितलियाँ भी तेरे हाथों पर बैठती हैं आकर
क्यूँ न कहूँ तुझे मल्लिका -ए- बागीचा सोचता मैं रहता हूँ

तेरे बालों में लग कर गुलाब भी खिला रहता है दिन भर
झुमके जब चूमते हैं रुख़सार तेरे जल जल मर मैं जाता हूँ

उस झुमके वाली को पायल पहनाने की हसरत है बहुत
इसीलिए मयख़ाने न जाकर आज कल पैसे मैं बचाता हूँ

मुहब्बत में हमारा भी नाम हो शिव-पार्वती की तरह ही
इसीलिए "चार लोगों" का उगला ज़हर पी मैं जाता हूँ

तेरे हाथों में मेरा हाथ होगा जब कल मुलाक़ात होगी
इसी ख़याल से बार - बार बावला हुआ मैं जाता हूँ



© तिरस्कृत


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