निष्ठुर जग
पिंजरे की चिरैया,की देख छटपटाहट,
कौंधे बिजलियां,न बदले भाग्य की लिखावट।
कमज़ोर परवाज़,किसे देता आवाज़?
हो रहा शंखनाद,पहना कर गुलामी का ताज़।
थे बेईमानी से सजाये हुए "घोंसले",
करतीं पस्त मज़बूत...
कौंधे बिजलियां,न बदले भाग्य की लिखावट।
कमज़ोर परवाज़,किसे देता आवाज़?
हो रहा शंखनाद,पहना कर गुलामी का ताज़।
थे बेईमानी से सजाये हुए "घोंसले",
करतीं पस्त मज़बूत...