...

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तब्दीली!
फसीलों पे लहराती यादों के वास्ते,
आओ चलें फिर नये इरादों के वास्ते!

जो कमाया था सदियों में वो सब कुछ ही खो गया,
चलो फिर चलें कुछ कमाने के वास्ते!

सहरा न रोक पाये थे कभी रास्ता तेरा,
अब कुत्ते खड़े हैं राह में तुझे रोकने के वास्ते!

तेरे होसलों ने जगाया था कभी गैरों को नींद से,
अब तेरी काविशें हैं सब सोने के वास्ते!

कभी रफाक़त तेरी बहुत नायाब थी उसे,
अब रक़ाबत तेरी ज़रूरी है उसे; जीने के वास्ते!

खुद को बहलाते बहलाते कहाँ तक आ गये हम,
कि गीदड़ों के नर्गे में हैं हम हिफाज़त के वास्ते!

ऐ 'आस' ख्वाबों की दुनिया से बाहर निकल ज़रा,
इजाज़त तुझे ज़रूरी है कुछ कहने के वास्ते।
© alfaaz-e-aas