...

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कुछ कहानियां छोड़ जाती हूं..
आती हूं मैं एक लम्हें को लेकर
फ़िर चली जाती हूं तुझे खुशियां देकर
देखना कहीं खो न जाऊं मैं
तुझे इस भीड़ में तन्हा छोड़ कर...
कहां जाऊंगी मुझे पता नहीं
बस इतना मालुम है मुझे
वहां से कोई वापस लौट कर
नहीं आता कभी...
जीने की चाह अब भी है मुझमें
क्युकी मौत का ख़ौफ मुझमें नहीं अभी
सोचती हूं अब सबको भुलाकर
अपनी मंज़िल का सफ़र तय करती हूं
जाते जाते उनके आंखों में
मुझे खोने का ग़म दे जाती हूं..
देखना तो अभी बहुत कुछ था मुझे
लेकिन अब मैं अपनी पलकों को
आराम देना चाहती हूं
जाते जाते अपनों के हवालें
कुछ कहानियां छोड़ जाती हूं...