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पुरुष और स्त्रियां
घृत बनते हैं पुरुष
बाती बनती हैं स्त्रियाँ
तब जलते हैं दीप
शब्द बनते हैं पुरुष
भाव बनती हैं स्त्रियाँ
तब बनते हैं गीत
विश्वास बनते हैं पुरुष
सम्मान बनती हैं स्त्रियाँ
तब बनते हैं मीत
और संरक्षण बनते हैं पुरुष
समर्पण बनती हैं स्त्रियाँ
तब होता है सौन्दर्य व गरिमामय
सृष्टि का सृजन!
बाती बनती हैं स्त्रियाँ
तब जलते हैं दीप
शब्द बनते हैं पुरुष
भाव बनती हैं स्त्रियाँ
तब बनते हैं गीत
विश्वास बनते हैं पुरुष
सम्मान बनती हैं स्त्रियाँ
तब बनते हैं मीत
और संरक्षण बनते हैं पुरुष
समर्पण बनती हैं स्त्रियाँ
तब होता है सौन्दर्य व गरिमामय
सृष्टि का सृजन!
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