...

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मैं बेटी घर पराए की
मैं बेटी घर पराए की
अपना घर हूं तलाश रही
कन्या दान किया बाबा ने
वहां भी हुई पराई
नई उम्मीदों संग आई जिस आंगन में
वहां भी कहां अपनी जगह बना पाई
मैं बेटी घर पराए की
अपना घर हूं तलाश रही
दोनो ही घर है मेरे
पर दोनो मे कहलाई मैं पराई
हूं एक घर की बेटी
और दूजे की बहू
दोनो ही ने जोड़ी
मुझसे अपनी -अपनी इज़्ज़त की बेड़ी
पर ना जानें मैं अपना वजूद कहां छोड़ आई
मैं बेटी घर पराए की
अपना घर हूं तलाश रही
बात होती बस मान और मर्यादा की
होता ना कोई निवारण
मेरे मन के बाधा की
बड़ी-बड़ी बातों के बीच
मेरे सपनों की दुनियां हमेशा निराश रही
मैं बेटी घर पराए की
अपना घर हूं तलाश रही
अंजली


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