...

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एक मौका और
एक मौका और, एक मौका और बस आखरी बार एक मौका और, कितने आखरी मौके मैं देती रही,
खुद को तोड़ तोड़ मैं इस रिश्ते को बुनती रही।

आखरी मौका, कभी आखरी न हो पाया,
मैं रिश्ता बुनती रही और खुद को खत्म करती रही।

किसी दिन यह उधेड़ बुन खत्म होगी बस यही सोच सोच मैं आखरी मौके हर बार देती रही।

धागा रेशम का था, खत्म हो गया अब और कहां से लाऊं,
आज मेरे हाथ कुछ भी नहीं, जो मेरा था उसको खोया, मेरी यारों कोई तो मुझे बताओ मैं उसको कैसे वापिस पाऊं।

क्या करू न आज मैं, मैं हूं, न ये ज़िंदगी जिंदगी है
क्या यही इश्क करने की बंदगी है...?
© Ananya