चार दिनों की चाँदनी
क्षणभंगुर होती है ज़िन्दगी, क्षणभर की है बात,
चार दिनों की ये ज़िन्दगी, चार क़दम का साथ।
चाहे कोई जतन तू कर ले, जो होना है वो होगा,
चार दिनों की चाँदनी, फिर वही अँधेरी रात।
पहला कदम बाल्यावस्था, माता-पिता से आस,
चलना गिरना गिरकर उठना, था सुखद एहसास।
हर पल अपने सिर पे होता, उनका ही बस हाथ,
चार दिनों की चाँदनी, फिर वही अँधेरी रात।
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चार दिनों की ये ज़िन्दगी, चार क़दम का साथ।
चाहे कोई जतन तू कर ले, जो होना है वो होगा,
चार दिनों की चाँदनी, फिर वही अँधेरी रात।
पहला कदम बाल्यावस्था, माता-पिता से आस,
चलना गिरना गिरकर उठना, था सुखद एहसास।
हर पल अपने सिर पे होता, उनका ही बस हाथ,
चार दिनों की चाँदनी, फिर वही अँधेरी रात।
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