...

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तेरी पनाहों में
तिरी बांहों में आकर हम जहां को भूल जाते हैं
हसीं लगती फिज़ायें हैं ख़िज़ाँ को भूल जाते हैं

वो तेरा रूठना हम से कभी नाराज़ हो जाना
मनाने के लिए हम तो अना को भूल जाते

वही कसमें वही वादे किए हमने कभी जो थे
निभाते हैं सदा हम तो सिला हम भूल जाते हैं

रही कोशिश ज़माने की हमें बदनाम करने की
मगर तेरी पनाहों में ये दुनिया भूल जाते हैं

तुम्हारी आंख से आंसू छलकने गर लगें दिलबर
उठा लेते हैं पलकों से हया को भूल जाते हैं

इबादत हम करें तेरी ख़ुदा तुमको बनाया है
मुहब्बत याद रखते हैं कज़ा को भूल जाते हैं

बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
© अमरीश अग्रवाल "मासूम"