...

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ग़ज़ल
अँधेरी शब में कितनी रौशनी थी
वो लड़की बात जब तक कर रही थी

मैं गहरे और गहरे जा रहा था
तुम्हारा जिस्म क्या था इक नदी थी

यही चमका रही थी सब में मुझ को
जो मेरे तन पे मेरी सादगी थी

समाअत में शकर सी घुल गई है
तेरी आवाज़ थी या चाशनी थी

इसी को कहते थे पहले ग़ज़ल हम
तुम्हीं से बात करना शाइरी थी

© Rehan Mirza

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