ग़ज़ल
अँधेरी शब में कितनी रौशनी थी
वो लड़की बात जब तक कर रही थी
मैं गहरे और गहरे जा रहा था
तुम्हारा जिस्म क्या था इक नदी थी
यही चमका रही थी सब में मुझ को
जो मेरे तन पे मेरी सादगी थी
समाअत में शकर सी घुल गई है
तेरी आवाज़ थी या चाशनी थी
इसी को कहते थे पहले ग़ज़ल हम
तुम्हीं से बात करना शाइरी थी
© Rehan Mirza
#WritcoQuote #writcopoem #ghazal #rehanmirza
वो लड़की बात जब तक कर रही थी
मैं गहरे और गहरे जा रहा था
तुम्हारा जिस्म क्या था इक नदी थी
यही चमका रही थी सब में मुझ को
जो मेरे तन पे मेरी सादगी थी
समाअत में शकर सी घुल गई है
तेरी आवाज़ थी या चाशनी थी
इसी को कहते थे पहले ग़ज़ल हम
तुम्हीं से बात करना शाइरी थी
© Rehan Mirza
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