...

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आशिकी-ए-हिसाब!
एक आस लिए बैठा हूं,
तेरी धुंधली याद लिए बैठा हूं,
तेरे दिए दर्द का साथ
लिए बैठा हूं,
तो तेरी मोहोब्बत का
इनाम लिए बैठा हूं,
सब कुछ छूट जाएगा अब
यकीन हो गया है मुझे!
मगर मेरे दर्द के हर एक हिस्से
का मैं हिसाब किए बैठा हूं।
तुम जो बेपरवाह हो मेरे
एहसासों को दफ्न कर,
मैं अब भी दुआ में
तुम्हारा नाम लिए बैठा हूं।


© सुकून