...

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"चिंगारी"
वो इक़ रात अंधियारी छोड़ गया है
चाँद.. अपनी चाँदनी सारी छोड़ गया है,

स्वप्न मरुस्थल आंखों में दरिया
वो यह कहाँ कश्ती हमारी छोड़ गया है,

लग जाती है छूने भर से
क़ाबख्त..कोई आज़कल अजब बीमारी छोड़ गया है,

यही दस्तूर है इस काफ़िर दुनिया का
कर कोई.. बारी-बारी छोड़ गया है,

आंसुओ से आग बुझती नहीं है
मुहब्बत में वो यह कैसी लाचारी छोड़ गया है,

जाने क्यूँ जलते हैं यह जुगनु
शायद कोई इनके दिल में भी इक़ "चिंगारी" छोड़ गया है!!




© बस_यूँ_ही