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देखो न दूर तुम...!
देखो न दूर तुम हाज़िर ये दौर है,
इन्साफ अब जहाँ में ज़िन्दा दरकोर है!

मज़लूम की आह पर खामोश हैं सभी,
ज़ालिम की हिमायत में ज़ोरों का शोर है!

वक़्त की नज़ाक़त है; लम्हा-ऐ-फिक्र है,
रहबर ये कह रहे हैं; ये सब्र का दौर है!
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