रात एक किताब
सोता कोई बेसुध मगन
देखे कई फिर ख्वाब नयन
खोकर कोई इस चैन को
जागे है रैन, जीने को वही
होकर अधीर है कुछ व्यथित
बिसराकर करता जश्न कोई
गुंजायमान होता उल्लास कही
अवसाद मे लिपटा कोई
भरता सिसकिया वक्त...
देखे कई फिर ख्वाब नयन
खोकर कोई इस चैन को
जागे है रैन, जीने को वही
होकर अधीर है कुछ व्यथित
बिसराकर करता जश्न कोई
गुंजायमान होता उल्लास कही
अवसाद मे लिपटा कोई
भरता सिसकिया वक्त...