राह जिंदगी की टेढ़ी-मेढ़ी
ये राह जिंदगी की टेढ़ी-मेढ़ी होती है||
मंजिल को पाने की चाह होती है,
लड़ कर थक कर बैठ जाते हैं
आसान यहां ना कुछ होता है||
मालूम हमें तुम्हें सबको होता है|
तो फिर एक सवाल है,
इंसान इन्हें उन्हें क्यों कोसता है?
अरे हो सकता है सब हो सकता है|
अगर संभव ना होता तो फिर ये इमारत,
ये सड़कें क्या ये सब अपने आप
उत्पन्न हो जाता है|
उस उड़ने वाली चिड़िया को कहां पता होता है
कि आज भूख मिटेगी या नहीं?
भोजन मिलेगा या नहीं?
वो फिर भी अपने पंखों पर अपनी कोशिशों पर
यकीन करती है और हर रोज
उम्मीदों की हौसलों की उड़ान लेकर उड़ती है|
देख जरा वो प्रेरणा देती है||
© Kajal Mishra ✍️
मंजिल को पाने की चाह होती है,
लड़ कर थक कर बैठ जाते हैं
आसान यहां ना कुछ होता है||
मालूम हमें तुम्हें सबको होता है|
तो फिर एक सवाल है,
इंसान इन्हें उन्हें क्यों कोसता है?
अरे हो सकता है सब हो सकता है|
अगर संभव ना होता तो फिर ये इमारत,
ये सड़कें क्या ये सब अपने आप
उत्पन्न हो जाता है|
उस उड़ने वाली चिड़िया को कहां पता होता है
कि आज भूख मिटेगी या नहीं?
भोजन मिलेगा या नहीं?
वो फिर भी अपने पंखों पर अपनी कोशिशों पर
यकीन करती है और हर रोज
उम्मीदों की हौसलों की उड़ान लेकर उड़ती है|
देख जरा वो प्रेरणा देती है||
© Kajal Mishra ✍️