...

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और एक दिन
बहुत बार गुज़रा उस सड़क से
कभी रुका नहीं
और ना ही देखने का साहस हुआ
उस बरगद के पेड़ को
जिसने पनाह दी थी कभी
हमें बारिश की बूंँदों से
पर आज वही से गुजरना
और बारिश का आना
बे मन ही सही रुकना...