...

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और एक दिन
बहुत बार गुज़रा उस सड़क से
कभी रुका नहीं
और ना ही देखने का साहस हुआ
उस बरगद के पेड़ को
जिसने पनाह दी थी कभी
हमें बारिश की बूंँदों से
पर आज वही से गुजरना
और बारिश का आना
बे मन ही सही रुकना पड़ा
नज़रे ज़मीन पर थी
और मन में अन्तर्द्वन्द था
अतीत के पन्ने आंँखों से गुजरने लगे
एक गहरी सांँस लेकर
दरख़्त को निहारा
फिर कदम चल दिए नज़रों के साथ
बाइक की चाभी से उकेरे
हमारे प्रेम के साक्ष्य
किसी शिलालेख की तरह अडिग थे
अब दिल में बादल थे
और आंँखों में बारिश...................।
© samrat rajput