...

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कहा ना खूबसूरत है
कहा ना खूबसूरत है और इतनी खूबसूरत है
के उसके मखमली हुस्न से निगाहें भी फिसलती है
कसम है साहीलों को चूमती पागल हवाओं की
वो जब पलके उठाती है तो यू महसूस होता है
समंदर रक्स करता है और उसकी रक्स की लहर पर
परिंदे गीत गाते है वो जब पलके झुकाती है
तो सूरज वक्त से पहले उफूक में डूब जाता है
कसम उन ताक रातों में उन पांच चरागों की
वो जब भी मुस्कुराती है धनक को आठ रंगों की तलब महसूस होती है हवा कच्चे गुलाबी की महक में भीग जाती है कसम शब की सियाही की के वो जब हसी जुल्फों की गिरेह खोल देती है अंधेरा फैल जाता है कभी आंचल सरक जाए तो उजाले आयते पड़ते बाहर निकलते है शबाबों हुस्न के सारे शरीफों में जो मुझसे मिलती है वो एक सूरत है
कहा ना खूबसूरत है और इतनी खूबसूरत है के
उसके मखमली हुस्न से निगाहें भी फिसलती है

© Farhan Haseeb

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