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सड़क
#सड़क

" आधा सड़क सरकार का,
आधा सड़क निर्माणकार का;
आधा सड़क बेघर यार का,

जीना मुश्किल बना दिया,
आधा सड़क निर्माणकार का;
बिना सुरक्षा के घुस्से में,
बना दिया उपकार का।

गड्ढे खाती है यह रस्सी,
तंग आ गई है यह अस्थायी;
करोड़ों का ख़र्च कर चुके,
परिणाम सिर्फ यह होगा धाई।

गोदाम की तरह भर गई हैं,
भ्रष्टाचार के दलाल यहाँ;
रुकने का नाम नहीं लेते,
टूटती हैं सरकारी योजनाएं।

पेड़-पौधों को काट कर,
रस्सियों के गुलामी की है तैयारी;
ना सोचा उन्होंने जब करनी थी ,
अच्छे इंसानों की विचारधारी।

हर जगह भरी हुई है चक्कर,
रोड़ बनाने में लगाते हैं वक्त;
बेचते हैं सिर्फ वादे,
जनता को बस देते हैं वक्त।

आधा सड़क सरकार का,
आधा सड़क निर्माणकार का;
आधा सड़क बेघर यार का I
© Rajesh Mandavi