...

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स्मृतियाँ तुम्हारी ...!
आधी धूप..
आधी छांव, ओढ़े...

तुम्हारे ध्यान की धूप में
तप रही है देह...!

और... किसी सृजन बीज की तलाश में
मेरे शब्द...!!

बीज़...
जो पल्लवित हों

जिस के पुष्पों से बना सकूँ
तुम्हें...