...

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औरत तेरी यही कहानी!
औरत तेरी यही कहानी...
मुझ को लिखनी है अपनी जुबानी!

फैला के पंख अपने, यह संसार समेटा है,
खोल दिए है बंधन सारे,डर को निकाल फेंका है!
रोजमर्रा के सारे काम हंस के कर लेती हूँ,
लेकिन पति श्री को एक दिन जरूर देतीं हूं,
रविवार को वो चाय बनाते, मैं देर तक सो लेतीं हूँ!
आदर सम्मान में...