...

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साज-ए-दिल
साज़-ए-दिल में उसकी तस्वीर बसा कर ,
शब के सितारों से उसकी धुन सुनता हूँ।

ख्वाबों में उसकी रफाक़त गुलज़ार भी खिले है,
सफ़क़ देख कर बहारों से इशरत करता हूँ।

कुछ ख़ास तशरीह तो नहीं है इश्क़ की कहानियों में ,
क्या मुकरर है इश्क़-ए-अंजाम सुखन पढता हूँ ।

मोहब्बत की लगन में मशगूल रहता हूँ ,
तसव्वुर में सोचकर उससे सुखन करता हूँ ।

हर्फो में उसकी तबस्सुम महसूस करता हूँ ,
सारा आलम मयकश होता है मैं बेखुदी में रहता हूँ।

© 👍पवन के अल्फाज़ 👍