...

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फिर क्यों
हर सुबह तुम्हारे शहर से, हवाएं उन यादों के गुलदस्ताओ को साथ लेकर आए,
हर शाम को तुम्हारे अहसासों के खुश्बुओं से, मेरे मन का बाग ये महक जाए।

बेचैन कर देती है मुझे, मेरे मन के बागो में लहराती तुम्हारे यादों की ये सरसराहट,
मेरे दिल को तड़पा कर रुला जाए हर रोज़, हर घड़ी झूठे तुम्हारे आने की आहट।

ना तुम बेवफ़ा थे , ना हम बेवफा है , फिर क्यों ? प्यार का हमारा ऐसा अंजाम है,
दिल को तो हर घड़ी तुम्हारा इंतजार है,लेकिन ख़ामोश ज़ुबान पे ना अब‌ कोई नाम है।

तुम ही मेरी दुआ हो, तुम ही हो इबादत ,इस टूटे हुए दिल में सिर्फ तुम्हारे लिए ही चाहत,
शायद इसलिए ही अहसास दिला जाती है, मुझे हर घड़ी झूठी तुम्हारे आने की आहट।।
©हेमा