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करवाचौथ मनाती हो
मुझको मालूम है थोड़े लड़ते हो तुम

छोटी छोटी बात पर सुनाते भी बहुत हो

हर बात का issue भी बन जाता है अचानक से

पर मैं यह भी जानता हूँ

की तेरी जिंदगी, जीना आसान नहीं

मेरे लिए दोस्त, ऑफिस और एक अंतहींन दुनिया है

तुमने अपनी दुनिया समेट ली है सिर्फ़ मेरे तक

फिर भी हर तीज त्यौहार मेरे नाम से मनाती हो

प्रेम की साक्षात मूर्त रूप हे स्त्री

तेरे इसी समर्पण व निश्चल प्रेम से

तो स्वयं कृष्ण भी नहीं बच सके

दुनिया के उधेरबुन् में रोटी कमाने की होड में

खेत खलिहान व ऑफिस दुकान तक

खुद को समेटने वाले पूरुष को उस प्रेम की निश्चलता

लाभ हानि से अलग प्रेम की शाश्वत सत्ता का

आभाष तो तुम ही कराती हो

मेरे जैसों के लिए भी करवा चौथ मनाती हो
© eternal voice नाद ब्रह्म