...

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New Normal
अभी अभी तो थे हम अपने गाँव चले ।
वक़्त जल्दी गुज़र जाता है,
बैठे अपनों के छाँव तले ।।
किनारा आ जाता है जल्दी
क़रीब कितना,
कितने धीमे धीमे ही क्यों न
नाव चले ।
अभी अभी तो थे हम अपने गाँव चले ।।

वो वादियों की हरियाली ।
और झूमती डाली डाली ।।
मिले थे जब चार दिशा,
बिना किसी बहाने से ।
फिज़ा हुई थी ओत प्रोत,
गुफ्तगू और अफसाने से ।।
शाम ढलती थी,किस्सों से,
होती थी सुबह हँसने हसाने से ।।
मिले थे जब चार दिशा,
बिना किसी बहाने से ।।

अब जो रुख़सत हो रहे सब,
अपने भीतर सब लेकर,
गाँव चले ।
किनारा आ ही गया है बस,
हैं मुसाफ़िर सब अपने ठाँव चले ।।
अभी अभी तो थे हम अपने गाँव चले।
वक़्त जल्दी गुजरता है,कितना
अपने दोस्तों के छांव तले ।।

© Sunny 'देव'
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