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गर हो इजाज़त...!
फ़रमाईश ख़ास हो गर तो
कोई मीठा-सा नग्मा सुना दूं,
न हो ऐतराज़ गर तो तुम्हारा
इक रंगीन रेखाचित्र बना दूं,
न हो गुस्ताखी गर तो तुम्हारी
ज़ुल्फों के उलझे पेंच सुलझा दूं,
हो इजाज़त गर तो तुम्हारे
गेसूओं में इक गुलाब सजा दूं,
गर हो इरादों पर ऐतबार मेरे तो
बोलो, सुर्ख-सब्ज़ चूड़ियां दिला दूं,
और हो इक हल्का सा इशारा तो
घर चलो, अभी मां बाप से मिला दूं!
—Vijay Kumar
© Truly Chambyal
कोई मीठा-सा नग्मा सुना दूं,
न हो ऐतराज़ गर तो तुम्हारा
इक रंगीन रेखाचित्र बना दूं,
न हो गुस्ताखी गर तो तुम्हारी
ज़ुल्फों के उलझे पेंच सुलझा दूं,
हो इजाज़त गर तो तुम्हारे
गेसूओं में इक गुलाब सजा दूं,
गर हो इरादों पर ऐतबार मेरे तो
बोलो, सुर्ख-सब्ज़ चूड़ियां दिला दूं,
और हो इक हल्का सा इशारा तो
घर चलो, अभी मां बाप से मिला दूं!
—Vijay Kumar
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