लता की आत्मकथा
© Nand Gopal Agnihotri
#ता १७/१/२०२५
स्वरचित -नन्द गोपाल अग्निहोत्री
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मैं रीढ़ हीन एक लता कुसुम,
नित नित मैं बढ़ती जाऊं।
पत्र भार से पड़ी मही पर,
मन ही मन पछताऊं।
होने लगीं प्रस्फुटित कलियां,
देख-देख घबराऊं।
कोमल कलियों से...