...

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लक्ष्मी
जिंदगी की ये दास्तान मेरी अपनी ही जुबानी
सोंचा सुनाऊं तुमको मेरी अनकही कहानी
खुश बहुत थे पापा, पैदा मैं जब हुई थी
आई है लक्ष्मी घर ,कह मा चहक गई थी
पर जद्दोजहद जिंदगी की,बड़े होते ही बढ़ गई
हर तरफ छूने को मुझको, होड सी थी लग गई
मेरी तरह ही देखती हैं, हर निगाहें सडको पे
कुछ भेड़िए तो दौड़ते भी है, लगाने हाथ कपड़ो पे
बस यहीं तक सीमित नहीं हैवानो की हैवानियां
कैसे बढ़े दुनिया में ऐसे ,क्या करे ये लडकियां
आंसू न गिरे कभी रहते हुए मां बाप के
पर आंसू का ही है जीवन जवानी के बाद से
कुछ आंसु तो छुपा लेते है हम मुस्कान के पीछे
पर कुछ दे जाते है जीवन भर की निशानी
सोंचा सुनाऊं तुमको मेरी अनकही कहानी

© Anjaan