...

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◆ माहुर भरा इश्क ◆
नशीली गर्मियों के वारिश में खिलना ,
तुम्हें दुबारा और बार बार देखने को
" उत्साहित " करता है ,

हम मिलेंगे हमारे उसी पुराने घर की छत पर ,
तुम चूम लेना मुझे उस बारिश की बूंद के सहारे
" चुपके " से ,

हवाएं भी अब बौद्धिक होने लगी हैं जो
फुसफुसा रही है शब्द
" रोमांस " के ,

मैं अपने आप को पाता हूँ एक
" कालजयी " समाधि में ,

सच कहता हूँ प्रिय !
मैं ये दूसरा अवसर पाकर बहुत प्रसन्न हूँ ,

इस " आवारा माहुर" भरे इश्क का !!



© निग्रह अहम् (मुक्तक )