...

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अधूरा पन्ना!
जीवन यथार्थ में एक क़िताब की तरह ही है..,

सबकी कहानी भिन्न-भिन्न
जिन्हें पड़ना कम सबको बस एक-दुसरे की कहानी को सुनना अच्छा लगता,

सबकी कोशिश रहती है के अंदर चाहे कितने ही फटे मुड़े-तुड़े पन्ने क्यूँ ना हों पर बाहर से..
..बाहर से इसका कवर सुन्दर हो बस!

काश... हम बाहर से इसे जितना ख़ूबसूरत बनाने की कोशिश करते हैं
उतना सुंदर इसे अंदर से बनाने की भी कवायत करते,

क्यूँ ना.. अंदर से इसका हर पन्ना मुहब्बत सा ख़ूबसूरत हो,

बिल्कुल.. बिल्कुल तुम्हारी तरह... है ना!

अब कई मलाल तो मुझे भी हैं..!

संसार रूपी इस लाइब्रेरी में हर क़िताब का कोई ना कोई पन्ना अधूरा है
क्यूँ के हमनें सिर्फ़ सुनना पसंद किया है किसी को पढ़ने की ज़हमत किसने उठायी है यहाँ!


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